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शनिवार, 23 मई 2009

लुप्त हो गई चन्द्रकिरण

हिन्दी की प्रसिद्ध साहित्यकार चन्द्रकिरण सोनरेक्सा जी may ’२००९ में इस दुनिया को छोड़ कर चली गई. लखनऊ वासी होने के नाते लखनऊ वालों को तो यह समाचार पढने को मिला होगा परन्तु बहुत से लोगों को शायद यह भी पता नहीं होगा की इस नाम की कोई साहित्यकार भी थी. एक समय महादेवी वर्मा के समकक्ष मानी जाने वाली चंद्र किरण जी के आखिरी दिन गुमनामी के अंधेरे में बीते. इसलिए मैं एक हिन्दी प्रेमी होने के नाते और साथ ही लखनऊ वासी होने के नाते उनके जीवन और हिन्दी साहित्य में उनके योगदान पर कुछ जानकारी देना अपना कर्तव्य समझती हूँ।
चन्द्रकिरण जी का जन्म पेशावर छावनी के नौशेरा मैं १९२० मैं एक निम्न मध्यवर्गीय परिवार मे हुआ। लेकिन उनका बचपन मेरठ में बीता। उनके पिता मिलिटरी मे स्टोरकीपर थे। अब प्रश्न उठता है की ऐसे मे उन्हें साहित्यिक वातावरण कैसे मिला? असल में उनके पिता के एक पारिवारिक मित्र थे रामस्वरूप अगरवाल। उन्होंने अपने बच्चो के लिए घर में एक बड़ा सा पुस्तकालय बना रखा था। हिन्दी की जो भी किताब या पत्रिका छपकर आती, वो अपने पुँस्त्कालय में मंगाकर रखते थे। बचपन में चन्द्रकिरण जी ने इसी पुस्तकालय में जाकर ढेर सारी किताबें पढ़ी और धीरे धीरे उनका रुझान साहित्य की ओर बढ़ता गया। सन १९३० में ११ वर्ष की उम्र में उनकी पहली कहानी "घीसू चमार" कलकत्ता की पत्रिका भारत मित्र नामक पत्रिका में छपी थी। उन दिनों लड़कियों के लेखन को सामान्य रूप में नही लिया जाता था खास तौर पर एक निम्न मध्यवर्गीय परिवार में। लेकिन इससे उनकी साहित्य रचना रुकी नही। उन्होंने अपना आस पास के परिवेश से भी बहुत कुछ सीखा। पंजाबी मोहल्ले में रहती थी, तो पंजाबी भाषा सीखी। भाई के दोस्त से बंगला भाषा सीखी। गाँधी जी के दर्शन से प्रभावित हुई तो उनकी आत्मकथा पढने के लिए गुजरती भाषा सीखी। आगे की पढ़ाई पुरी करते हुए साहित्य रत्ना की उपाधि प्राप्त की। धीरे धीरे उन्होंने हिन्दी की प्रमुख महिला साहित्यकारों में अपना स्थान बनाया। उस समय अनेक लेखिकाएं सक्रिय थी। उनमें महादेवी वर्मा, सत्यवती मालिक, कमला चौधरी, उषादेवी मित्र, हेमवती देवी, सुमित्रा कुमारी सिन्हा आदि प्रमुख थी। उनमें से अधिकांश के साथ चंद्र किरण जी का पत्र व्यवहार रहा किंतु रूढिवादी परिवार की होने के कारण उनका मेलजोल कम ही रहा।

चन्द्रकिरण जी का विवाह एक नौकरशाह और फोटोजर्नलिस्ट सोनरेक्सा जी से हुआ. विवाह के बाद वो लखनऊ आ कर रहने लगी. यहाँ हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार अमृतलाल नगर जी से उनके घनिष्ठ सम्बन्ध हो गए. यहाँ तक की नागर जी ने अपना पहला कहानी संग्रह “एक दिल हज़ार दास्ताँ” चन्द्रकिरण जी और रजिया सज्जाद ज़हीर को समर्पित किया था.

चन्द्रकिरण जी ने अनेक उपन्यास, ३०० से अधिक कहानियाँ, बल्कथाएं आदि लिखी जो धर्मयुग, सारिका, साप्ताहिक हिंदुस्तान जैसी नामचीन पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई. इसके अलावा उन्होंने रेडियो नाटक, टीवी फिल्मो की स्क्रिप्ट भी लिखी. उन्होंने २१ वर्षों तक लखनऊ मैं आकाशवाणी मैं सम्पादक और स्क्रिप्ट लेखक के तौर पर काम किया.
प्रमुख रचनाएँ
आदमखोर (१९४६) (कहानी संग्रह)
चंदन चांदनी (१९६२)
बर्थडे (१९६२) रुस्सियन मैं अनुवाद "दयें रोज्ह्देन्य". (कहानी संग्रह)
वंचिता (१९७२)
जवान मिटटी (१९९०) (कहानी संग्रह)
कहीं से कहीं नहीं (२००३)
और दिया जलता रहा (२००३)
गुमराह (panjaab मैं आतंकवाद पर आधारित दूरदर्शन फ़िल्म)

अपने लेखन मैं चन्द्रकिरण जी ने तत्कालीन निम्न मध्यवर्गीय महिलाओं की स्थिथि को बहुत जीवन्तता के साथ दर्शाया है. उन्होंने निम्नवर्गीय और मध्यमवर्गीय परिवेश को बहुत करीब से देखा था और यही वर्ग उनकी रचनाओं का आधार बन गए. अपने समय की विसंगतियों और विडंबनाओं पर सशक्त लेखनी चलने के कारण ही उन्हें एक समय महादेवी के समकक्ष भी गिना जाता था. चन्द्रकिरण जी निम्न मध्यमवर्गीय परिवार से थी, महादेवी जी एक जमीदार परिवार से. दोनों की आपस मैं मुलाकातें बहुत ही कम रही. किंतु वे दोनों ही एक दूसरे के गद्य साहित्य से प्रभावित थी. स्वयं चन्द्रकिरण जी का कहना था की “मेरे कनवास, मेरे लेखन का दायरा छोटा भले हो, कृत्रिम नहीं है. मैंने अपनी कहानियों में कभी उपदेश नही दिया. जो देखा, वही इमानदारी के साथ लिखा. मेरा लेखन तो वही है जिसे एक वाक्य में कहना हो, तो कहूँगी "मैंने खिड़की से आसमान देखा.
अपने साहित्य का प्रकाश जन-जन तक पहुचने वाली चन्द्रकिरण आख़िर लुप्त हो गई. दुःख की बात यह है की अधिकांश साहित्यकारों और हिन्दी प्रेमियों ने उनकी सुध ही नही ली. आख़िर हम हिन्दी साहित्य और साहित्यकारों की कब तक उपेक्षा करते रहेंगे? क्या हिन्दी और हिन्दी साहित्यकारों को कभी वो गौरव मिल सकेगा जिसके वे हकदार हैं?

1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

श्रृद्धांजलि!!