अभी पिछले साल एक फिल्म रिलीज हुई थी 'इश्किया' जिसका एक गीत सबकी जुबान पर चढ़ गया था'इब्नबतूता बगल में जूता'। इस गीत के गीतकार थे गुलजार। इस गीत को लेकर बवाल मचा था कि यह गीत प्रसिद्ध हिन्दी कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी की कविता पर आधारित है। यह सुनकर मुझे भी उत्सुकता हुई उस कविता को पढ़ने की और उस कविता को इन्टरनेट पर ढूँढ ही निकाला। आप भी पढिए और अपनी राय दीजिए-
इब्नबतूता पहन के जूता
निकल पड़े तूफान में
थोड़ी हवा नाक में घुस गई
घुस गई थोड़ी कान में
कभी नाक को, कभी कान को
मलते इब्नबतूता
इसी बीच में निकल पड़ा
उनके पैरों का जूता
उड़ते उड़ते जूता उनका
जा पहुँचा जापान में
इब्नबतूता खड़े रह गये
मोची की दुकान में।
(रचनाकार -सर्वेश्वर दयाल सक्सेना)
12 टिप्पणियां:
हाँ आप सही कह रही हैं बहुत बवाल मचा था इस गीत पर। मैने सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी का यह गीत पढ़ा नही थी सिर्फ़ सुना ही था आपके ब्लॉग से पढ़ने का अवसर मिला। धन्यवाद।
हा हा हा आज तो इब्नेबतूता का जूता एक अलग ही कहानी कह गया । रोचक पोस्ट
बहुत बढ़िया लगा! उम्दा पोस्ट!
मैंने पढ़ा था इसे ....आपके ब्लॉग पर पुनः पढ़कर इसे और समझने का अवसर मिला ....आपको हार्दिक शुभकामनायें
already read and heard.
bahut badiya...
bachhe to khoob gate hai is gaane ko..
bahut sundar rochak prastuti hetu dhanyavad..
आपके ब्लॉग से पढ़ने का अवसर मिला,बधाई
पहली बार पढ़ा ....
शुभकामनायें आपको !
हमने भी यहाँ पढ़ लिया...पर अब तो यह जूता भी क्या-क्या न कराये.
रोचकता के साथ सुन्दर पोस्ट
accha hua apne yah kavita kikh di...iski sirf do - tin line hi suni thi par apke blog par to puri kavita hi mil gayi..
intresting..
thanks
Mr sarweshwar dayal saxena was my jija ji Mama live in Basti(U.P).I met him.
बहुत उत्कृष्ट अभिव्यक्ति.हार्दिक बधाई और शुभकामनायें!
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
http://saxenamadanmohan.blogspot.in/
http://saxenamadanmohan1969.blogspot.in/
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