कल सुबह ही अख़बार पढ़ते हुए मेरी नज़र इस समाचार पर पड़ी की वर्ष २००९ के लिए अंतर्राष्ट्रीय इंदु शर्मा कथा सम्मान उपन्यासकार भगवानदास मोरवाल को दिया जाएगा। उन्हें यह सम्मान उनके उपन्यास 'रेत' के लिया मिला है। 'रेत' का प्रकाशन वर्ष २००८ में राजकमल प्रकाशन से हुआ था।
सर्वप्रथम मोरवाल जी को बहुत बहुत बधाई। एक हिन्दी प्रेमी होने के नाते मेरी नज़र इस ख़बर पर पड़े बिना नही रह सकी। अख़बार भी हिन्दी का था और ख़बर भी पहले पन्ने पर छपी थी। किंतु ख़बर को और अधिक विस्तार के साथ और अधिक स्थान मिलना चाहिए था। अंग्रेज़ी भाषा के बुकर पुरस्कार की शोर्ट लिस्टिंग के समय तो सारे अख़बार अन्तिम ५ रचनाओं की आलोचनात्मक टिपण्णी से भरे रहते हैं। किंतु इस ख़बर में न तो लेखर के बारे में न ही उसकी रचना के बारे में कुछ छापा था।
भारतीय सरकार को अंतर्राष्ट्रीय स्तार का पुरस्कार स्थापित करना चाहिय जिसमे समस्त विश्व की हिन्दी रचनाओं को शामिल किया जन चाहिय। जब अंग्रेज़ी भाषा का जनक देश इंग्लैंड बुकर पुरस्कार के मध्यम से अंग्रेज़ी भाषा और साहित्य का झंडा फेहरा रहा है तो ऐसा ही प्रयास हम क्यूँ नहीं कर सकते?
हिन्दी साहित्य का अनुवाद दुनिया की सभी प्रमुख भाषाओँ में किया जन चाहिए ताकि दुनिया भर के लोग हिन्दी साहित्यकारों की सोच, उनकी वैचारिक परम्परा और दूरदर्शिता को समझ सकें। इससे अधिकाधिक लोग हिन्दी भाषा सीखने के लिया प्रेरित होंगे और वे भारतीय भी अपनी संस्कृति की और लौटने को तत्पर होंगे जो विदेशी रंग में रंग कर भारतीय परम्पराओं और आदर्शों को भूल चुके हैं।