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गुरुवार, 14 मई 2009

शायर की हाजिरजवाबी

अकबर इलाहाबादी का नाम तो हर शायरी-पसंद आदमी को पता होगा. अकबर साहिब ने उर्दू शायरी में जो मुकाम हासिल किया वो बहुत कम लोग कर सके हैं. अकबर साहिब अंग्रेज़ी हुकूमत में एक ऊंचे सरकारी ओहदे पर भी थे. यहाँ पर मैं उनसे जुडा एक मजेदार किस्सा बताना चाहूंगी जो मैंने किसी किताब में पढ़ा था.

एक बार एक महाशय अकबर साहिब से मिलने उनके घर पहुचे. अकबर साहिब उस समय जनानखाने में थे. उन महाशय ने अपना कार्ड अन्दर भिजवाया. उस पर उनका नाम छपा था लेकिन साथ में ‘बी.ए.’ कलम से लिखा हुआ था. अकबर साहिब को उन महाशय की यह हरकत नागवार गुजरी. वे उनसे मिलने बाहर नही आए बल्कि कार्ड के पीछे यह शेर लिख कर भिजवा दिया-

शेख जी घर से न निकले और ऐसे लिख दिया
आप बी.ए. पास हैं तो में भी बीवी पास हूँ.

जिंदगी की छोटी से छोटी घटना मैं भी शायरी निकाल लेना एक महान शायर की पहचान होती है. यहाँ पर अकबर साहिब की एक ग़ज़ल भी पेश कर रहूँ जो मुझे बहुत पसंद है. उम्मीद करती हूँ कि पढने वालों को पसंद आएगी।

कहाँ ले जाऊँ दिल दोनों जहाँ में इसकी मुश्किल है
यहाँ परियों का मजमा है, वहाँ हूरों की मेहफ़िल है
इलाही कैसी कैसी सूरतें तूने बनाई हैं,
के हर सूरत कलेजे से लगा लेने के क़ाबिल है।
ये दिल लेते ही शीशे की तरह पत्थर पे दे मारा
मैं कहता रह गया ज़ालिम मेरा दिल है, मेरा दिल
हैजो देखा अक्स आईने में अपना बोले झुंजलाकर
अरे तू कौन है, हट सामने से क्यों मुक़ाबिल है
हज़ारों दिल मसल कर पांओ से झुंजला के फ़रमाया
लो पहचानो तुम्हारा इन दिलों में कौन सा दिल है

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