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सोमवार, 16 मई 2011

उठो लाल अब ऑंखें खोलो

बेटे को थपकी देकर सुलाने वाली मॉं की कई प्रकार की लोरियां तो आपने सुनी होंगी। मगर क्‍या बच्‍चे को जगाने वाली कोई कविता सुनी है। मैनें बचपन में ऐसी एक कविता अपने हिन्‍दी पाठ्यक्रम में पढी थी जो खड़ी बोली हिन्‍दी के महाकवि अयोध्‍या सिंह उपाध्‍याय 'हरिऔध' जी ने लिखी थी। आप भी पढि़ए और बताइये कैसी लगी- 

उठो लाल अब ऑंखें खोलो।
पानी लाई हूँ मुँह धो लो।
बीती रात कमल दल फूले।
उनके ऊपर भँवरे झूले।
चिडि़यां चहक उठीं पेड़ों पर।
बहने लगी हवा अति सुन्‍दर।
नभ में प्‍यारी लाली छाई।
धरती ने प्‍यारी छवि पाई।
भोर हुआ सूरज उग आया।
जल में पड़ी सुनहरी छाया।
ऐसा सुन्‍दर समय न खोओ।
मेरे प्‍यारे अब मत सोओ।










4 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

बचपन की यादें ताज हो गयीं। इस कविता को पोस्‍ट करने के लिए धन्‍यवाद।

जीवन और जगत ने कहा…

अच्‍छी कविता। बचपन में पढ़ी थी। आज फिर याद दिला दी आपने। इंग्लिश राइम्‍स के जमाने में हिन्‍दी बाल कवितायें कहीं खोती जा रही हैं।

Director ने कहा…

achhi kavita.

Unknown ने कहा…

लेखक का नाम बताने के लिए धन्यवाद ।